रविवार, मार्च 27

Aadarshpraanataa Ka Saakshy

आदर्शप्राणता का साक्ष्य 


तुम जितना ही आदर्श में स्वार्थप्राण होगे-- 
सेवा में दक्षता, कार्य में निपुणता, 
बात व व्यवहार में मधुरता, 
सहानुभूति व सम्बर्द्धना--
ये तुम्हारे चरित्र को अनुलिप्त कर 
तुम्हारे पारिपार्श्विक में प्रतिफलित होंगे ही-- 
तुम आदर्श में जो स्वार्थ प्राण हुए हो, 
उनकी प्रतिष्ठा ही जो तुम्हारा परमस्वार्थ है-- 
यह आग्रह ही 
तुम्हें बाध्य कराके, 
किन्तु  अज्ञात भाव से 
ऐसा बना डालेगा !--
और यही है 
तुम्हारी आदर्शप्राणता का साक्ष्य !  |45|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

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