आदर्शप्राणता का साक्ष्य
तुम जितना ही आदर्श में स्वार्थप्राण होगे--
सेवा में दक्षता, कार्य में निपुणता,
बात व व्यवहार में मधुरता,
सहानुभूति व सम्बर्द्धना--
ये तुम्हारे चरित्र को अनुलिप्त कर
तुम्हारे पारिपार्श्विक में प्रतिफलित होंगे ही--
तुम आदर्श में जो स्वार्थ प्राण हुए हो,
उनकी प्रतिष्ठा ही जो तुम्हारा परमस्वार्थ है--
यह आग्रह ही
तुम्हें बाध्य कराके,
किन्तु अज्ञात भाव से
ऐसा बना डालेगा !--
और यही है
तुम्हारी आदर्शप्राणता का साक्ष्य ! |45|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी
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