सेवाविहीन की दावी
मनुष्य की सेवा--
जिससे वह स्वस्ति, शांति
और आनंद पाता है,
अंततः ऐसा कुछ किये बगैर
लेने के समय
अपना कहकर दावी करके
लेने मत जाओ ;--
उससे प्राप्ति तो होगी ही नहीं,
बल्कि लांछना व अवज्ञा ही
तुम्हें
अपघात से क्षुब्ध कर देगी ! |43|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें