गुरुवार, मार्च 17

Chaurya Ki Parinati

चौर्य की परिणति 

चोरी मत करो ;--
चाह की धृष्ट बुद्धिवृति 
किसी को भी 
उदवृत किये वगैर 
अन्याय ढंग से, अज्ञात भाव से 
परिपूरित होना चाहती है--
वही है चौर्य ; 
चौर्य से बुद्धिवृति दिनोंदिन 
दूसरे को क्षति पहुँचाकर
अपकर्ष  की दिशा में अदृश्य हो जाती है 
अर्थात, कर्म के द्वारा 
जिसे करके इच्छा की पूर्ति करने में 
बोध व ज्ञान के उन्मेष से वह प्राप्ति होती है-- 
वही चौर्य से आहत व अवसन्न होकर 
अधर्म को आलिंगन करता है 
इसीलिये उतनी घृणा, उतना पाप, उतनी हीनता है-- 
इसीलिये कहता हूँ, 
इस चौर्यबुद्धि को प्रश्रय देकर 
अपना एवं पारिपार्श्विक का 
सर्वनाश न करो 
सावधान हो जाओ !  |37|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

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