मंगलवार, मार्च 22

Amrut Aur Maran

अमृत और मरण 

तुम जितना ही बहु में अनुरक्त होगे-- 
हर में हर ढ़ंग से-- 
एक को उपलक्ष बनाये बगैर,
तभी वह हर अनुरक्ति 
पृथक भाव से, 
नाना तरह से 
विच्छिन्न-वृति की 
सृष्टि सहित 
तुम्हें छिन्न-भिन्न करके 
तुम्हारे मूढ़त्व व मरण का पथ परिष्कार करेगी,-- 
और, जभी तुम 
एकानुरक्ति को अवलंबन  करके 
बहु को आलिंगन करोगे-- 
वह बहु और बहु से सृष्ट वृत्तियाँ 
वही एकानुरक्ति में निरोध लाभ कर 
क्रमान्वय में विन्यस्त होकर 
बोध व ज्ञान की उद्दीपना सहित 
अमृत को निमंत्रित करेगी !  |44|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

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