गुरुवार, मार्च 17

Prayojan Ke Anupooran Mein

प्रयोजन के अनुपूरण में  

आलस्य को प्रश्रय मत दो, 
सेवा-तत्पर हो,
संवर्द्धना  में 
मनुष्य को अभिनंदित करो,-- 
साध्यानुसार, जैसा कर सकते हो 
दूसरे के प्रयोजन के अनुपूरक हो,-- 
स्वयं तुष्ट और तृप्त रहकर 
दूसरे को तुष्ट और तृप्त करो,-- 
देखोगे, 
बिना चाहे भी 
अर्थ, ऐश्वर्य तुममें 
अवाध होकर रहेगा, 
दरिद्रता-- दूर में खड़ी होकर 
तुम्हें अभिवादन करेगी !  |30|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

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