संघात में चेतना और धर्म
तुम चेतन तभी हो
जभी तुम्हारा पारिपार्श्विक
तुममें संघात पैदा करता है
और, यही चेतनता ही है
तुम जो जीवन में हो
उसका ही अभ्रांत साक्ष्य !
ऐसा होने पर तुम्हारा पारिपार्श्विक
तुममें जैसा संघात पैदा करेगा
तुम्हारे भाव, बोध व वृत्ति का
वैसा ही समावेश होगा ;
ऐसा यदि होता है--
तो वह करना ही धर्म है
जिसमें तुम अपने पारिपार्श्विक को लेकर
जीवन, यश व वृद्धि के क्रमवर्द्धन में
वर्धित हो सको--
और, तुम वही बोलो, वही आचरण करो,
उसका ही अनुष्ठान करो
जिससे तुम अपने पारिपार्श्विक में
वैसा बन सको ! --
देखोगे
अमंगल, अशुभ और भय से
कितना त्राण पाते हो ! |46|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें