शनिवार, अप्रैल 2

Aadarsh Yaa Guru Aur Aadarshaurakti

आदर्श या गुरु और आदर्शानुरक्ति 

जिनकी सेवा, साहचर्य और अनुरक्ति सहित अनुसरण 
मनुष्य को जीवन, यश और वृद्धि में 
क्रमोन्नत कर दे, -- 
जिनके प्रति एकान्तिक अनुरक्ति वा भक्ति 
अटूट भाव से निबद्ध रहने पर 
पारिपार्श्विक और जगत 
उसमें किसी प्रकार विक्षेप नहीं ला सके, 
वह विक्षिप्त संघात सम्वद्ध व विन्यस्त होकर, 
सार्थकता लाभ करके, 
भाव, ज्ञान और बोध में सम्वृद्ध होकर 
अमृत को आलिंगन करे 
वे ही हैं आदर्श, इष्ट या गुरु ; -- 
इसलिये
इष्ट, आदर्श या गुरु में एकान्तिक अनुरक्ति 
मनुष्य के जीवन के हित में उतना आवश्यक है ; 
धर्म को अटूट कर 
जीवन को वहन करने में ये आदर्श, इष्ट या गुरु ही हैं 
प्रधान आवश्यकीय |
तुम उनमें अपनी अनुरक्ति, भक्ति, प्रेम को न्यस्त करके-- 
उनको ही परम स्वार्थ विवेचना कर 
उनका ही अनुसरण करो-- 
कृतार्थ होगे !  |47|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

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