रविवार, मार्च 27

Aadarshpraanataa Ka Saakshy

आदर्शप्राणता का साक्ष्य 


तुम जितना ही आदर्श में स्वार्थप्राण होगे-- 
सेवा में दक्षता, कार्य में निपुणता, 
बात व व्यवहार में मधुरता, 
सहानुभूति व सम्बर्द्धना--
ये तुम्हारे चरित्र को अनुलिप्त कर 
तुम्हारे पारिपार्श्विक में प्रतिफलित होंगे ही-- 
तुम आदर्श में जो स्वार्थ प्राण हुए हो, 
उनकी प्रतिष्ठा ही जो तुम्हारा परमस्वार्थ है-- 
यह आग्रह ही 
तुम्हें बाध्य कराके, 
किन्तु  अज्ञात भाव से 
ऐसा बना डालेगा !--
और यही है 
तुम्हारी आदर्शप्राणता का साक्ष्य !  |45|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

मंगलवार, मार्च 22

Amrut Aur Maran

अमृत और मरण 

तुम जितना ही बहु में अनुरक्त होगे-- 
हर में हर ढ़ंग से-- 
एक को उपलक्ष बनाये बगैर,
तभी वह हर अनुरक्ति 
पृथक भाव से, 
नाना तरह से 
विच्छिन्न-वृति की 
सृष्टि सहित 
तुम्हें छिन्न-भिन्न करके 
तुम्हारे मूढ़त्व व मरण का पथ परिष्कार करेगी,-- 
और, जभी तुम 
एकानुरक्ति को अवलंबन  करके 
बहु को आलिंगन करोगे-- 
वह बहु और बहु से सृष्ट वृत्तियाँ 
वही एकानुरक्ति में निरोध लाभ कर 
क्रमान्वय में विन्यस्त होकर 
बोध व ज्ञान की उद्दीपना सहित 
अमृत को निमंत्रित करेगी !  |44|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

Sevaviheen Ki Daavi

सेवाविहीन की दावी 

मनुष्य की सेवा-- 
जिससे वह स्वस्ति, शांति 
और आनंद पाता है, 
अंततः ऐसा कुछ किये बगैर 
लेने के समय 
अपना कहकर दावी करके 
लेने मत जाओ ;-- 
उससे प्राप्ति तो होगी ही नहीं, 
बल्कि लांछना व अवज्ञा ही 
तुम्हें 
अपघात से क्षुब्ध कर देगी !  |43|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

Shaitaan Ahm Ka Niyantran

शैतान अहं का नियंत्रण 

तुम्हारा अहंकार जभी 
दूसरे को छोटा बनाकर 
या अस्वीकार कर 
अपने को प्रतिष्ठित करना चाहता है 
तभी उसे शैतान अहं समझकर 
पहचान लो ; -- 
तुम अहं को इसप्रकार 
नियोजित करो-- 
जिसमें उसे परिचालित कर 
अपने पारिपार्श्विक के 
जीवन, यश और वृद्धि को 
आमंत्रित कर सको !  |42|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

Ahm Ki Sevaa

अहंमकी सेवा 

सेवा जहाँ स्वास्थ्य, आनन्द
और उन्नति नहीं ला सके 
 किन्तु परिश्रम, उत्कंठा 
और आकुलता 
सब ही व्यर्थता में निःशेष हो जाता है-- 
तो निश्चय जानो 
वह सेवा अहंमकी सेवा है !  |41|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

Sevaheen Shushrooshaa

सेवाहीन शुश्रूषा 

सेवा का अर्थ वही है--
जो मनुष्य को 
सुस्थ, स्वस्थ, उन्नत और आनन्दित कर दे ; 
और, जहाँ ऐसा नहीं, 
बल्कि शुश्रूषा है, 
वह सेवा अपलाप को ही 
आवाहन  करती है !  |40|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

गुरुवार, मार्च 17

Sanchay Aur Seva

संचय और सेवा 

संचय करो,-- 
किन्तु सेवा के लिये !
तुम्हारा संचय यदि 
सेवा की ही पूजा न करे, 
तो निश्चय जानो-- 
वह 
उसी के लिये है 
जो वर्द्धन को क्षुन्न करता है !  |39|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी 

Ripudaman

रिपुदमन 

काम, क्रोधादि रिपुओं को 
दमन करने के प्रयास में 
बेचैन मत होओ,--
वही बेचैनी का भाव 
उनकी प्रतिष्ठा ही करता है ; 
बल्कि उद्दीप्त रिपु को 
ऐसे किसी भी चित्ताकर्षक 
विषय या भाव में लगाकर 
उसे निरस्त करो 
जिससे उसका प्रश्न ही 
तुम्हारे मस्तिष्क में कम उठे ;-- 
देखोगे, रिपु को आयत करना कितना सहज है !  |38|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी 

Chaurya Ki Parinati

चौर्य की परिणति 

चोरी मत करो ;--
चाह की धृष्ट बुद्धिवृति 
किसी को भी 
उदवृत किये वगैर 
अन्याय ढंग से, अज्ञात भाव से 
परिपूरित होना चाहती है--
वही है चौर्य ; 
चौर्य से बुद्धिवृति दिनोंदिन 
दूसरे को क्षति पहुँचाकर
अपकर्ष  की दिशा में अदृश्य हो जाती है 
अर्थात, कर्म के द्वारा 
जिसे करके इच्छा की पूर्ति करने में 
बोध व ज्ञान के उन्मेष से वह प्राप्ति होती है-- 
वही चौर्य से आहत व अवसन्न होकर 
अधर्म को आलिंगन करता है 
इसीलिये उतनी घृणा, उतना पाप, उतनी हीनता है-- 
इसीलिये कहता हूँ, 
इस चौर्यबुद्धि को प्रश्रय देकर 
अपना एवं पारिपार्श्विक का 
सर्वनाश न करो 
सावधान हो जाओ !  |37|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

Swaarth

स्वार्थ 

जिससे प्राप्ति हो रही है-- 
उसे पूरण कर, उच्छल करके 
प्राप्ति को अवाध करना ही 
स्वार्थ का तात्पर्य है;-- 
प्राप्ति के उत्स की पूर्ति करने के बजाय 
जहाँ ग्रहणमुखर  हो जाता है, 
स्वार्थ वहाँ भ्रान्ति के कवल में पड़कर 
म्लान और मुह्यमान है निश्चय !  |36|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

Krodh Mein Doordarsha

क्रोध में दुर्दशा 

क्रोध जिसे क्षिप्त कर 
स्वार्थान्धता के वशीभूत होकर 
दूसरे को व्याहत करता है, 
दुर्दशा 
दिग्विजयी होकर 
अट्टहास करके उसका अनुसरण करती है !  |35| 

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

Lobh

लोभ 

यथोपयुक्त प्रयोजन को 
अतिक्रम कर 
अतिरिक्त की उदग्रीव आकांक्षा को ही 
लोभ कहा जा सकता है ; -- 
तुम उस अतिक्रमण से 
सावधान रहो, 
कारण, वह तुम्हें 
अवसन्नता में परिचालित कर 
मृत्यु में निःशेष कर सकता है !  |34|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

Karya Nishfal Mein Deerghsootrataa

कार्य-निष्फल में दीर्घसूत्रता 

दीर्घसूत्रता आलस्य का ही सम्बंधी है-- 
कार्य निष्फल करने के गुरुदेव हैं !-- 
जो करना है
तत्क्षण करके 
दीर्घसूत्रता को विदा कर दो ;-- 
दक्षता और कार्यसिद्धि 
तुम्हारी अनुचर होगी !  |33|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

Daridrata Ka Bandhu

दरिद्रता का बंधु

आलस्य, अविश्वास, आत्मम्भरिता 
और अकृतज्ञता की तरह 
बंधु या मित्र रहने से 
दरिद्रता को और खोजना नहीं पड़ेगा;-- 
यहाँ तक कि इनमें से कोई एक भी 
दरिद्रता का ऐसा बंधु हैं-- 
इनमें से किसी को छोड़कर 
जो नहीं रह सकता, 
ऐसा धन यदि तुम्हारे अन्तर में 
बसोबास करता है, 
दुःख के अभाव की बलाई को 
और सहन नहीं करना पड़ेगा !   |32|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी

Vanchana

वंचना 

यदि वंचना  का प्रेम 
अटूट रखना चाहते हो तो 
जिसे पाकर 
पुष्ट हो रहे हो, 
उसे पुष्ट करने के धंधे में 
क्यों कष्ट उठाओगे ?  |31|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

Prayojan Ke Anupooran Mein

प्रयोजन के अनुपूरण में  

आलस्य को प्रश्रय मत दो, 
सेवा-तत्पर हो,
संवर्द्धना  में 
मनुष्य को अभिनंदित करो,-- 
साध्यानुसार, जैसा कर सकते हो 
दूसरे के प्रयोजन के अनुपूरक हो,-- 
स्वयं तुष्ट और तृप्त रहकर 
दूसरे को तुष्ट और तृप्त करो,-- 
देखोगे, 
बिना चाहे भी 
अर्थ, ऐश्वर्य तुममें 
अवाध होकर रहेगा, 
दरिद्रता-- दूर में खड़ी होकर 
तुम्हें अभिवादन करेगी !  |30|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी