आदर्श--शैतान की माया
यदि तुम
ऐसे किसी में
प्रलुब्ध होकर
अपने आदर्श को अतिक्रम करो, --
किन्तु अपने आदर्श को
लक्ष्य बनाकर नहीं,
प्रतिष्ठित करके भी नहीं,
समझो,
शैतान की माया में
तुम मुग्ध और प्रलुब्ध हुए हो,--
अभी लौटने पर
निस्तार को स्पर्श कर सकते हो ! |53|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र, चलार साथी
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