इच्छा-विलासी
जो चाहते हो--
तुम्हारे चलन, चरित्र, वाक्, व्यवहार और क्रमागति
अर्थात लगे रहना
चाहे जैसे या जिस प्रकार उसे पा सकते हो--
उस दिशा में उसके किनारे भी नहीं जाते
या जाने में कष्ट होता है,--
बेशक समझ लो--
तुम्हारी वह चाह खांटी नहीं है
प्रत्युत वह चाह की केवल विलासिता है ! |20|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी
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