शुक्रवार, अक्टूबर 1

Dhaarnaanuranjit Darshan

धारणानुरंजित दर्शन 

तुम्हारी चिन्ता और चलन ने
तुम्हें जिस प्रकार प्रकृत बनाया है--
तुम जहां न जाओ,
जो ही देखो न,--
तुम्हारी प्रकृति
पारिपार्श्विक को वही सोचेगी,
वही देखेगी !  |21|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी 

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