गुरुवार, अक्टूबर 7

Sukh

सुख 

जो तुम्हारी being (सत्ता) को
सजीव, उन्नत और आनन्दित करके 
पारिपार्श्विक में
प्रसारित कर
सभी को उत्फुल्ल कर देता है--
यदि सुख कहो--
तो उसे ही कहा जा सकता है !  |28|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

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