प्रेम में दक्षता और निपुणता
एक मात्र प्रेम ही अविष्कार कर सकता है--
कि उसके प्रिय किस प्रकार
जीवन-यश-प्रीति और वृद्धि में उन्नत होकर
अपने पारिपार्श्विक में उच्छल हो सकते हैं,--
इसलिये
प्रेम या प्रणय ही मनुष्य में सहज ज्ञान को समावेश कर
दक्षता और निपुणता सहित
उसे वास्तविकता में
प्रतिष्ठित करता है ! |17|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी
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