यदि किसी का दोष देख लेते हो,--
तुम्हारे माथे में वह मौजूद ही रहे--
तो उसके कारण व अवस्था को अनुसंधान कर--
यथायथ भाव से समझकर कि
उसके लिये वह कैसे संभव हुआ --
सहानुभूति का एक भाव लेकर
जो तुम्हारे माथे में मौजूद है
उसे इस प्रकार रिक्त कर दो
जिससे तुम्हारे साथ वैसी घटना ही
अस्वाभाविक हो जाये ! |12|
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र, चलार साथी
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