गुरुवार, अक्टूबर 7

Aalasya Mein Daaridrya

आलस्य में दारिद्र्य 

आलस्य, सक्षम नहीं हूँ,
होता नहीं है
या संभव नहीं है
ऐसी चिन्ता और चलन से
सावधान
और सतर्क रहो, --
कारण,
ये सब सहज में ही
वंश परम्परा में संक्रामित होते हैं
एवम
पारिपार्श्विक इनके द्वारा
दुष्ट बन जाते हैं; --
फलस्वरूप वंश, समाज और देश
मूढ़, मुह्यमान और अवसन्न होकर
विशाल दरिद्रता में
निःशेष हो जाते हैं !  |29|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

Sukh

सुख 

जो तुम्हारी being (सत्ता) को
सजीव, उन्नत और आनन्दित करके 
पारिपार्श्विक में
प्रसारित कर
सभी को उत्फुल्ल कर देता है--
यदि सुख कहो--
तो उसे ही कहा जा सकता है !  |28|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

मंगलवार, अक्टूबर 5

Karmpatutaa Mein Anupraanata

कर्म पटुता अनुप्राणता 

अनुप्राणता जहाँ जितनी सहज -- 
और तरोताजा है 
कर्मपटुता वहाँ 
उतना स्वाभाविक 
और उद्दाम है !  |27|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी 

सोमवार, अक्टूबर 4

'Naa' Ka Kutumb

'ना' का कुटुम्ब 

'ना' है जिसकी सहधर्मिणी
हो 'ना' जिसका साला
यदि वह अभिनंदित होता है--
दुर्दशा का सिंहासन अटल रहेगा
संदेह नहीं !  |26|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र,  नारीनीति

शनिवार, अक्टूबर 2

Siddhi Ka Path

सिद्धि का पथ 


समर्थ नहीं होने की चिन्ता
या समर्थता में संदेह
कार्यतः 'असमर्थता' को ही
उत्पन्न करता है ; --
असमर्थता या संदेह को भगा दो --
लगे रहो,
चेष्टा करो,
सिद्धि तुम्हारे सामने है !  |25|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

Samarthataa Mein 'Naa'

समर्थता में 'ना'

और, समर्थता की चिन्ता में
जो 'ना' को बुलाकर
जाँच लेना चाहता है--
'ना' जिसका इतना विश्वस्त है !--
'ना' के बिना जिसका कोई भाव, कोई चिन्ता,
कोई कर्म-परिचालना ही नहीं होता,
समर्थ होने या करने का इंतजाम-बात
वह जितना ही क्यों न करे,
उसके सबकुछ 'ना' को आलिंगन कर
अवश होकर सो पड़ते हैं !  |24|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

शुक्रवार, अक्टूबर 1

Samarthataa Mein 'Haan'

समर्थता में 'हाँ'

समर्थता और असमर्थता में
उतना ही अंतर है
जितना कि 'हाँ' और 'ना' में,
समर्थता में जो 'ना' को नहीं बुलाता है,
जिसे समर्थ होने के विषय में कोई
प्रश्न ही नहीं
बल्कि कर्म को अवलंबन करता है,--
करने के आनंद में किसी में वह रुकता नहीं
वह समर्थ होता है !  |23|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

Jay Mein Prayojan-Pooran

जय में प्रयोजन-पूरण

यदि जय ही चाहते हो
वाह्यिक शक्ति परिचालना में
अभिभूत करके नहीं
बल्कि उसके प्रयोजन की पूर्ति में
तुम मुखर
और वास्तव
होकर उठ खड़े हो !  |22|

--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी

Dhaarnaanuranjit Darshan

धारणानुरंजित दर्शन 

तुम्हारी चिन्ता और चलन ने
तुम्हें जिस प्रकार प्रकृत बनाया है--
तुम जहां न जाओ,
जो ही देखो न,--
तुम्हारी प्रकृति
पारिपार्श्विक को वही सोचेगी,
वही देखेगी !  |21|

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचंद्र, चलार साथी