शुक्रवार, सितंबर 26

दुःख की चिंता

दुःख की चिंता में
विव्रत न रहो--
दुःख का भाव किसी को भी
आनंदित नहीं कर सकता; --
प्रत्युत मनुष्य को कैसे
सुखी बना सकोगे
कैसा व्यवहार पाने पर
मनुष्य आनंद पाता है--
और वह कैसे किया जा सके इत्यादि
चिंता करो,
और कार्य में लग जाओ ;--
स्वयं भी सुखी होगे
और दूसरे को भी वैसा बना सकोगे ! 5
--: श्री श्री ठाकुर, चलार साथी

कोई टिप्पणी नहीं: