शुक्रवार, सितंबर 26

यशस्विता में सेवा

तुम मनुष्य के
ऐसा नित्य प्रयोजनीय
बनकर खड़े होओ --
जिसमें तुम्हारी सेवा से
तुम्हारा पारिपार्श्विक
यथासाध्य प्रयोजन की पूर्ति करके
जीवन, यश और वृद्धि को
आलिंगन कर सके ; --
और, ऐसा करके ही तुम
हर के हृदय में व्याप्त हो जाओ
और ये सब तुम्हारे
चरित्र में परिणत हो, --
देखोगे
यश तुम्हें क्रमागत
जयगान से यशस्वी बना देगा
संदेह नहीं ! 3
--: श्री श्री ठाकुर, चलार साथी

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