तुम जानो या नहीं जानो,
समर्थ हो या असमर्थ--
तुम्हारी चेष्टा की क्रमागति अटूट,
अव्याहत रहे,--
सिद्धि का पथ ढूंढ लो--
कृतार्थ होगे
कृतकार्यता आयेगी;
और तुम्हारी प्रतिष्ठा
तुम्हारे आदर्श को
प्रतिष्ठित करेगी ही--
निश्चय जानो ! २
समर्थ हो या असमर्थ--
तुम्हारी चेष्टा की क्रमागति अटूट,
अव्याहत रहे,--
सिद्धि का पथ ढूंढ लो--
कृतार्थ होगे
कृतकार्यता आयेगी;
और तुम्हारी प्रतिष्ठा
तुम्हारे आदर्श को
प्रतिष्ठित करेगी ही--
निश्चय जानो ! २
--श्री श्री ठाकुर, चलार साथी
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