मंगलवार, सितंबर 30

प्रेम में कर्मप्रवणता

प्रेम से,
दृढ़ता, आमोदशीलता
और, कर्म प्रवणता का अभ्युत्थान होता है,
और,
अप्रेम से
अवसन्नता, अकर्मण्यता, दुःख
और
अशांति ही आती है ! 8
--: श्री श्री ठाकुर, चलार साथी

परश्रीकातरता

यदि अपने को श्रीहीन बनाकर
विपथ पर
विपन्न ही होना चाहते हो--
तो परश्रीकातरता को
किसी भी तरह नहीं छोड़ो ! 7
-- : श्री श्री ठाकुर, चलार साथी

प्रेम से ज्ञान

मानसिक स्वस्थता एवं प्रेम से ही
ज्ञान व शुभदर्शिता का आविर्भाव होता है--
किंतु
द्वंद्व, अविश्वास व वितृष्णा से
अज्ञानता व निराशाप्रवणता की ही
उत्पत्ति होती है ! 6
-- : श्री श्री ठाकुर, चलार साथी

शुक्रवार, सितंबर 26

दुःख की चिंता

दुःख की चिंता में
विव्रत न रहो--
दुःख का भाव किसी को भी
आनंदित नहीं कर सकता; --
प्रत्युत मनुष्य को कैसे
सुखी बना सकोगे
कैसा व्यवहार पाने पर
मनुष्य आनंद पाता है--
और वह कैसे किया जा सके इत्यादि
चिंता करो,
और कार्य में लग जाओ ;--
स्वयं भी सुखी होगे
और दूसरे को भी वैसा बना सकोगे ! 5
--: श्री श्री ठाकुर, चलार साथी

प्रकृति का धिक्कार

प्रकृति उन्हें ही धिक्कारती है
जो प्रत्यक्ष की अवज्ञा
या अस्वीकार कर
परोक्ष का आलिंगन करते हैं ; --
और, परोक्ष जिसके प्रत्यक्ष को
रंजित और लांछित करता है--
वही धोखे का अधिकारी होता है ! 4
-- : श्री श्री ठाकुर, चलार साथी

यशस्विता में सेवा

तुम मनुष्य के
ऐसा नित्य प्रयोजनीय
बनकर खड़े होओ --
जिसमें तुम्हारी सेवा से
तुम्हारा पारिपार्श्विक
यथासाध्य प्रयोजन की पूर्ति करके
जीवन, यश और वृद्धि को
आलिंगन कर सके ; --
और, ऐसा करके ही तुम
हर के हृदय में व्याप्त हो जाओ
और ये सब तुम्हारे
चरित्र में परिणत हो, --
देखोगे
यश तुम्हें क्रमागत
जयगान से यशस्वी बना देगा
संदेह नहीं ! 3
--: श्री श्री ठाकुर, चलार साथी

मंगलवार, सितंबर 23

कृतकार्यता में क्रमागति

तुम जानो या नहीं जानो,
समर्थ हो या असमर्थ--
तुम्हारी चेष्टा की क्रमागति अटूट,
अव्याहत रहे,--
सिद्धि का पथ ढूंढ लो--
कृतार्थ होगे
कृतकार्यता आयेगी;
और तुम्हारी प्रतिष्ठा
तुम्हारे आदर्श को
प्रतिष्ठित करेगी ही--
निश्चय जानो ! २
--श्री श्री ठाकुर, चलार साथी

चलार साथी

तुम जगत में प्लावन की तरह बढ़ चलो--
सेवा, उद्यम, जीवन और वृद्धि को लेकर
व्यष्टि और समष्टि में
अपने आदर्श की प्रतिष्ठा करके--
जय, यश और गौरव सहित;--
और, नारी यदि चाहे तुम्हें
तो अपने मंगलशंखनिनाद से
सारे हृदय को मुखरित कर
तुम्हारे पीछे दौड़ पड़े, -
किंतु सावधान ! --
पर इसकी चाह तुम्हें नहीं रहे ! 1

--: श्री श्री ठाकुर, चलार साथी

मेरी बातें

मेरी बातें यदि तुम्हारे लिये--
कथनी व चिंता का सिर्फ़ खुराक भर रहे--
करनी एवं आचरण में
उन सबों को यदि--
वास्तव में प्रस्फुटित न कर सके--
तो--
तुम्हारी प्राप्ति
तमसाच्छन्न रह जायेगी--
वह किंतु अति निश्चय है--

तुम्हारा "मैं"
श्रीश्री ठाकुर, चलारसाथी