दोषदृष्टि उन्नति का बाधक
दोषदृष्टि को चिर दिनों के लिये
विदा करो
मनुष्य में जो गुणों को देखो
वही सोचो, वही बोलो
और, चर्चा करो ; --
यथासंभव सावधान रहो--
किसी का भी दोष तुम्हें
किसी प्रकार
क्षति नहीं पहुँचा सकेगा ! |10|
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूल चन्द्र, चलार साथी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें