यह सोचना होगा,
चिंता करके ढूँढ़ निकलना होगा; --
और उसके साथ
एक विरक्ति या आक्रोश के बोध को
सजग रखना होगा, --
और, ऐसा करने के लिए
मस्तिष्क को उस प्रकार तैयार करना होगा,
देख पाओगे कि
कुछ दिनों के बाद
उन दोषों का अभिनय
तुम किस प्रकार कर रहे हो;--
इसलिए सावधान हो जाओ--
दोष देखने, दोष सोचने, विरक्ति
और आक्रोश से ! 11
--: श्री श्री ठाकुर, चलार साथी